Saturday, September 17, 2011

मिट्टी

घड़ा
मिट्टी
सोखती है आग को
और बदल जाती है घड़े में

घडा फिर सोखता है
पानी के आग को
और करता है
उसे शीतल

क्‍या गजब है
कि अग्निपरीक्षा के बाद भी
मिट्टी नही छोडती
अपनी प्रवृत्ति .................




खपरा

मिट्टी
का वह रूप
जो घोलती है
सोखती है
फिर
रोकती है
पानी को...

16 comments:

  1. गहन अभिव्यक्ति ...आपका ब्लॉग अच्छा लगा ... आभार

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  2. हार्दिक अभिवादन -बहुत ही सुन्दर जज्बात

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  3. बेहद गहन व सशक्त अभिव्यक्ति।

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  4. अग्निपरीक्षा के बाद भी
    मिट्टी नहीं छोडती
    अपनी प्रवृत्ती...
    वाह...
    सार्थक, सुन्दर संकेत/सन्देश...
    उत्तम क्षणिकाएं...

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  5. बहुत ही सार्थक अभिवयक्ति....

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  6. प्रकृति कहाँ बदलती है।

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  7. क्या लिखूँ पूनम जी सिर्फ़ वाह लिखना बहुत कम होगा। आपके गहन चिंतन की दाद देनी पड़ेगी। बहुत खूब बहुत-बहुत बधाई।

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  8. पहली बार आज तुम्हारा ब्लॉग देखा .. अच्छा लगा । इसका शीर्षक देवनागरी में कर लो ।

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  9. वाह ...बहुत सुन्‍दर भावमय करते शब्‍दों का संगम .. ।

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  10. कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  11. वह ...बहुत बढ़िया लिखा है ...गहन अभिव्यक्ति ...सुंदर सोच ...बधाई

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  12. सार्थक,सुंदर,अच्छी रचना ।

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  13. Poonam ji mitti ke madhyam se bahut bada sandesh deti hai aapki yah rachna.....lajabaab.

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  14. अत्यंत सार्थक और गहन अभिव्यक्ति ...

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  15. बहुत शशक्त रचनाएँ हैं ... स्वागत है आपका इस ब्लॉग जगत में .. मिट्टी के इस रूप को बाखूबी उकेरा है आपने ...

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