Saturday, October 1, 2011

बंटवारा

रोटी की गंध
चूल्‍हे से उठी नही
कि लग जाती है
पंचायत
कौन पहले खायेगा
कौन पहले
और हर बार की तरह
रोटी बनाने वाला ही भूखा रह जाता है 

Wednesday, September 28, 2011

हार्स-पावर

सोचो 
अगर पृथ्वी से चले जायें
सारे मजदूर
कहीं और
तो पृथ्‍वी से चले जायेगी
समूची मानव शक्ति
और शेष बचे रहेंगें कुछ हार्स-पावर
उन दिनों पृथ्‍वी
कितनी बावली हो जायेगी
कि हलक में
दो बूंद पसीना भी नही

बूंद

हम समुन्‍दर के लिए नही है
और ना ही है हम मेघों के लिए
ना पपीहे के कंठ के लिए
और ना ही मोरपंखों के लिए
हम वो बूंद है
जो
सोख लिए जाऐंगे रेगिस्‍तान में ............

Saturday, September 17, 2011

मिट्टी

घड़ा
मिट्टी
सोखती है आग को
और बदल जाती है घड़े में

घडा फिर सोखता है
पानी के आग को
और करता है
उसे शीतल

क्‍या गजब है
कि अग्निपरीक्षा के बाद भी
मिट्टी नही छोडती
अपनी प्रवृत्ति .................




खपरा

मिट्टी
का वह रूप
जो घोलती है
सोखती है
फिर
रोकती है
पानी को...
चाय

कैसी गजब की ताकत होती है ना आग में
पानी के बूंद-बूंद को
खौला देती,
शक्‍कर के हर दाने को
देती है अनंतता
और उद्वेलित करती है
चायपत्‍ती को
कि वह अपने अंदर की पूरी प्रतिभा
बाहर निकाल दे

कैसी अजब सी ताकत होती है ना आग में
कि वह तीन अलग अस्तित्‍व को
समेटकर
बनाती है एक. . . . . .चाय