घड़ा
मिट्टी
सोखती है आग को
और बदल जाती है घड़े में
घडा फिर सोखता है
पानी के आग को
और करता है
उसे शीतल
क्या गजब है
कि अग्निपरीक्षा के बाद भी
मिट्टी नही छोडती
अपनी प्रवृत्ति .................
खपरा
मिट्टी
का वह रूप
जो घोलती है
सोखती है
फिर
रोकती है
पानी को...
मिट्टी
सोखती है आग को
और बदल जाती है घड़े में
घडा फिर सोखता है
पानी के आग को
और करता है
उसे शीतल
क्या गजब है
कि अग्निपरीक्षा के बाद भी
मिट्टी नही छोडती
अपनी प्रवृत्ति .................
खपरा
मिट्टी
का वह रूप
जो घोलती है
सोखती है
फिर
रोकती है
पानी को...
गहन अभिव्यक्ति ...आपका ब्लॉग अच्छा लगा ... आभार
ReplyDeleteहार्दिक अभिवादन -बहुत ही सुन्दर जज्बात
ReplyDeleteबेहद गहन व सशक्त अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअग्निपरीक्षा के बाद भी
ReplyDeleteमिट्टी नहीं छोडती
अपनी प्रवृत्ती...
वाह...
सार्थक, सुन्दर संकेत/सन्देश...
उत्तम क्षणिकाएं...
बहुत ही सार्थक अभिवयक्ति....
ReplyDeleteगहन भावमय क्षणिकायें.
ReplyDeleteप्रकृति कहाँ बदलती है।
ReplyDeleteक्या लिखूँ पूनम जी सिर्फ़ वाह लिखना बहुत कम होगा। आपके गहन चिंतन की दाद देनी पड़ेगी। बहुत खूब बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteपहली बार आज तुम्हारा ब्लॉग देखा .. अच्छा लगा । इसका शीर्षक देवनागरी में कर लो ।
ReplyDeleteवाह ...बहुत सुन्दर भावमय करते शब्दों का संगम .. ।
ReplyDeleteकल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
वह ...बहुत बढ़िया लिखा है ...गहन अभिव्यक्ति ...सुंदर सोच ...बधाई
ReplyDeleteसार्थक,सुंदर,अच्छी रचना ।
ReplyDeletePoonam ji mitti ke madhyam se bahut bada sandesh deti hai aapki yah rachna.....lajabaab.
ReplyDeleteअत्यंत सार्थक और गहन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत शशक्त रचनाएँ हैं ... स्वागत है आपका इस ब्लॉग जगत में .. मिट्टी के इस रूप को बाखूबी उकेरा है आपने ...
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