1
जिसमें ढोता आया है
वह अपना हर दायित्व
सिर्फ वही जानता है
जिसमें ढोता आया है
वह अपना हर दायित्व
सिर्फ वही जानता है
दो ऑंखे होती है श्रमिक की पीठ पर
शोषक के जुल्म को घूरती हुई
२
आखिर कब तक ढंकी रहे कमीज
कब तक दुबककर बैठे
बनियान के अंदर
जुल्म के खिलाफ बोलने के लिए होना ही पडेगा नंगा पीठ को
3
पेट से ज्यादा भरोसा करता है
श्रमिक अपनी पीठ पर
पेट का क्या
भर जाए
तो पूंजीपतियों के पक्ष में भी बोल सकता है
पीठ के बिम्ब को इस तरह से मारक बनते पहली बार पढ़ा...
ReplyDeleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति है पूनम जी,
इस ब्लॉग के लिए धन्यवाद, अब हम आपकी कवितायें पढ़ पायेंगें.
पीठ पर गहरी अभिव्यक्ति है ......पूनम जी,
ReplyDelete