चाय
कैसी गजब की ताकत होती है ना आग में
पानी के बूंद-बूंद को
खौला देती,
शक्कर के हर दाने को
देती है अनंतता
और उद्वेलित करती है
चायपत्ती को
कि वह अपने अंदर की पूरी प्रतिभा
बाहर निकाल दे
कैसी अजब सी ताकत होती है ना आग में
कि वह तीन अलग अस्तित्व को
समेटकर
बनाती है एक. . . . . .चाय
इन सामान्य बिम्बों से भी अर्थपूर्ण व भावपूर्ण कविता बन सकती है, आश्चर्य..., धन्यवाद पूनम जी.
ReplyDeleteएकदम कड़ी, मीठी.
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
ReplyDeleteहम तो इसीलिये पीते हैं।
ReplyDeleteबेहतरीन....
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