Saturday, August 20, 2011

मेरी कविता

                          मै और नदी 

मेरे घर के सामने
बहती है एक नदी
घंटो जिसमें पैर डाले
बैठी रहती हूं निहारते उसे

मुझे पता है
वह नदी
रोज मेरा इंतजार करती है
और जिस दिन
मै उसके पास नही जाती
वह उमड-उमड कर आती है
मेरी सीढियों को स्‍पर्श करने

मेरे घर और नदी के बीच
बहुत खुला आसमान है
जिसमें मै कभी
अपने परिंदे छोड देती हूं
तो वह कभी अपनी मछलियां
इस तरह मिलतें हैं
मै और नदी

3 comments:

  1. This poem is little bit different then your previous poems taking the essence of nature's beauty .

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  2. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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