हम समुन्दर के लिए नही है
और ना ही है हम मेघों के लिए
ना पपीहे के कंठ के लिए
और ना ही मोरपंखों के लिए
हम वो बूंद है
जो
सोख लिए जाऐंगे रेगिस्तान में ............
घड़ा
मिट्टी
सोखती है आग को
और बदल जाती है घड़े में
घडा फिर सोखता है
पानी के आग को
और करता है
उसे शीतल
क्या गजब है
कि अग्निपरीक्षा के बाद भी
मिट्टी नही छोडती
अपनी प्रवृत्ति .................
खपरा
मिट्टी
का वह रूप
जो घोलती है
सोखती है
फिर
रोकती है
पानी को...
चाय
कैसी गजब की ताकत होती है ना आग में
पानी के बूंद-बूंद को
खौला देती,
शक्कर के हर दाने को
देती है अनंतता
और उद्वेलित करती है
चायपत्ती को
कि वह अपने अंदर की पूरी प्रतिभा
बाहर निकाल दे
कैसी अजब सी ताकत होती है ना आग में
कि वह तीन अलग अस्तित्व को
समेटकर
बनाती है एक. . . . . .चाय