मेरी कविता
मै और नदी
मेरे घर के सामने
बहती है एक नदी
घंटो जिसमें पैर डाले
बैठी रहती हूं निहारते उसे
मुझे पता है
वह नदी
रोज मेरा इंतजार करती है
और जिस दिन
मै उसके पास नही जाती
वह उमड-उमड कर आती है
मेरी सीढियों को स्पर्श करने
मेरे घर और नदी के बीच
बहुत खुला आसमान है
जिसमें मै कभी
अपने परिंदे छोड देती हूं
तो वह कभी अपनी मछलियां
इस तरह मिलतें हैं
मै और नदी